Menu
blogid : 24351 postid : 1304969

प्राचीन ज्ञान के नाम पर आप डरते, शरमाते और खीझते क्‍यों हैं ?

madhbendra
madhbendra
  • 7 Posts
  • 1 Comment

इतिहास को समझने और व्‍याख्‍यायित करने के लिए जो ‘आधुनिक विचार’ है, वह किसी भी स्‍थापना के लिए ठोस सबूत मांगता है। पर, अपने यहां उपलब्‍ध साहित्यिक साक्ष्‍यों में कई संदर्भों के अतिरेक उद्धरण के चलते उसकी प्रासंगिकता संदेहास्‍पद हो जाती है। यही वजह है कि हम पुरातात्विक उत्‍खननों से प्राप्‍त सामग्रियों पर आश्रित हैं। जिस हद तक पुरातात्विक साक्ष्‍य हमारे पास उपलब्‍ध हैं, उस स्‍तर तक हमने इतिहास को समझने की चेष्‍टा की है। इस आधार पर हम जिस आधुनिक इतिहास की बात कर रहे हैं, वह आखिरी सत्‍य तो नहीं ही है।

अपने यहां इतिहास लेखन की दूसरी कमजाेरी है यह डार्विन के विकासवादी सिद्धांत पर आधारित है। मार्क्सवादी चिंतकों ने इतिहास की चक्रीय अवधारणा को नकार दिया है। जिसमें इतिहास के क्रमिक उत्‍थान और पतन की बात कही गई है। एक तरह से साक्ष्‍यों पर वैचारिकी का तड़का लगाकर परोसा गया है। अपनी बाध्‍यताओं के चलते आधुनिक इतिहासलेखन हड़प्‍पा सभ्‍यता को आज तक सही से स्‍पष्‍ट नहीं कर सका है। इस सभ्‍यता के भौतिक संस्‍कृति के अवशेष सुदूर तक मिल रहे हैं। संकट स्‍थापना की है।

1950 के दशक में पुरातत्‍वविद बीबी लाल ने हस्तिनापुर पर शोध किया था। वो ये जानना चाहते थे कि महाभारत में वर्णित बाढ़ के चिंह्न यहां मिलते हैं कि नहीं। आश्‍चर्यजनक रूप से उन्‍हें इसके अवशेष मिले। वहां महज एक ट्रेंच डालकर उत्‍खनन हुआ था और उसके बाद कुछ नहीं हुआ। क्‍यों ?

जब साहित्यिक साक्ष्‍य और पुरातात्विक साक्ष्‍यों का मेल हो रहा था, तो उस पर और अधिक अनुसंधान की आश्‍वश्‍यकता थी। पर, हमारे इतिहासकार आत्‍म मुग्‍धता के खतरे से डरे हुए थे। अभी यमुना हिंडन दोआब में खेती या घर बनाने के दौरान कई अवशेष जमीन से निकल पडते हैं, उस पर एक भी जानामाना इतिहासकार कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। अगर, आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को ही उत्‍खनन से मिली सामग्रियों की बात करें, तो इसका भी हमारे आधुनिक इतिहासकारों ने उसी हद तक इस्‍तेमाल किया है, जिस हद तक इतिहास में ये अपने वैचारिकी की स्‍थापना कर पाते हैं।

जो लोग प्राचीन ज्ञान पर सवाल उठा रहे हैं, उनसे पूछना चाहता हूं कि आप इतिहास को दायरे में सिमटा हुआ देखना चाहते हैं, या इसे दायरों से मुक्‍त विमर्श के रूप में। आपको सांस्‍कृतिक इतिहास से इतना परहेज क्‍यों है ? अगर प्राचीन समृद्धता की स्‍थापना हो जाती है, तो क्‍या यह आपके लिए गौरव की बात नहीं होगी ? आज यह पुनरुत्‍थानवादी चेतना है, कल वास्‍तविकता भी बन सकती है। अपने यहां जो पोथी-पतरा है न, वह भी चंद्र ग्रहण और सूर्यग्रहण की सटीक भविष्‍यवाणी करता है। बारिश और तूफान की भविष्‍यवाणियां भी मिलाजुलाकर सही ही रहती है। और मजे की बात है, इसका आधार आधुनिक भौतिकी तो नहीं ही है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply